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![हरियाणा की मिट्टी: आवश्यक प्रकार और विशेषताएं (the Soil of Haryana: Essential Types and Characteristics)](https://haryanamagazine.com/wp-content/uploads/2024/12/the-Soil-of-Haryana-Essential-Types-and-Characteristics-1024x576.png)
हरियाणा की मिट्टी: आवश्यक प्रकार और विशेषताएं (the Soil of Haryana: Essential Types and Characteristics)
- हरियाणा में भूमि सुधर एवं विकास निगम लिमिटेड की स्थापना 1974 में की गयी। हरियाणा का अधिकाँश भाग मैदानी है, जिसका निर्माण यमुना, घग्गर, सरस्वती आदि नदियों द्वारा निक्षेपित जलौढ़ के कारण हुआ है। जलौढ़ मृदा का रंग पीला-भूरा होआ है। यह मिट्टी बहुत ही उपजाऊ होती है।
- हरियाणा की भूमि को मुख्यत: 3 भागों में बांटा गया है।
- हरियाणा में सर्वाधिक क्षेत्र में रेतीली दोमट मृदा मिलती है
- हरियाणा के मैदानी भाग में मुख्यत: पीले-भूरे रंग की उपजाऊ मिट्टी मिलती है।
- पहाड़ी क्षेत्रों (मोरनी) में पथरीली मिट्टी मिलती है।
- हरियाणा के प्रसिध्द कृषि भूगोलविद डॉक्टर जसवीर सिंह ने प्रदेश की मृदा को 6 भागों में बांटा है।
हरियाणा की मिट्टी एवं उसके प्रकार
हरियाणा, भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक प्रमुख कृषि राज्य है। इसकी मिट्टी की संरचना, गुणवत्ता और प्रकार क्षेत्रीय कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हरियाणा की मिट्टी की विविधता यहां की कृषि गतिविधियों और फसलों की प्रगति को प्रभावित करती है।
1. अति हल्की मृदा (Very Sandy Soil)
विशेषताएं:
- चुने की अधिकता एवं वनस्पति तत्वों की कमी होती है।
- इसमें बहुत अधिक रेत की मात्रा होती है।
- जल ग्रहण करने की क्षमता कम होती है।
- यह मिट्टी गर्मी में जल्दी सूख जाती है और ठंडक में जल्दी जम जाती है।
स्थान:
- सिरसा के दक्षिणी भाग, फतेहाबाद भिवानी, महेन्द्रगढ़ और हिसार में स्थित है।
मुख्य फसलें:
- बाजरा, ज्वार, ग्वार, मूंगफली, अरहर, मुंग।
2. हल्की मृदा
इस मृदा को दो भागों में बांटा गया है
- अपेक्षाकृत बालू दोमट मृदा
- बालुई दोमट मृदा
अपेक्षाकृत बालू दोमट मृदा (Relatively Sandy Loam Soil)
विशेषताएं:
- दोमट मृदा को रोसली भी कहा जाता है।
- जल ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है।
- यह मिट्टी बालू (Sandy Soil) और दोमट (Loam Soil) के मिश्रण से बनती है।
- बालू की मात्रा अधिक होती है, लेकिन दोमट की तुलना में इसमें थोड़ी अधिक चिकनाई होती है।
स्थान:
- भिवानी, रेवाड़ी, गुरुग्राम, झज्जर व हिसार में स्थित है।
मुख्य फसलें:
- गेहूं, ज्वार, बाजरा, ग्वार, मूंग, चना, तिलहन, दलहन।
बालुई दोमट मृदा (Sandy Loam Soil)
विशेषताएं:
- इसे आमतौर पर सैंड-लोम मृदा भी कहा जाता है।
- बालू और दोमट की समान मात्रा होती है, जिसमें बालू की तुलना में थोड़ी अधिक चिकनाई होती है।
- यह मृदा नरम होती है।
- दोनों मिट्टियों के गुण होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक जल धारण क्षमता होती है।
स्थान:
- सिरसा तहसील डबवाली के कुछ गाँव में पायी जाती है।
मुख्य फसलें:
- गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, मूंग, ग्वार, अरहर, तिलहन और दलहन।
3. मध्य मृदा
यह मृदा भरी दोमट व हल्की दोमट और सामान्य दोमट मिट्टियों का सम्मिलित रूप है। यह तीन प्रकार की होती है।
- मोटी दोमट
- हल्की दोमट मृदा
- दोमट मृदा
विशेषताएं:
- सिंचाई के मामले में संतुलित होती है, और इसमें पोषक तत्वों की मात्रा भी मध्य होती है।
- जैविक पदार्थों (ह्यूमस) की अच्छी मात्रा होती है।
- जल को अच्छी तरह से धारण करती है, न ज्यादा और न कम।
- जलभराव की समस्या नहीं होती।
- इसमें रेत, चिकनी मिट्टी और कुछ हद तक क्ले (कीचड़) के कण होते हैं।
स्थान:
- मोटी दोमट: नुह, फिरोजपुर झिरका के निचले हिस्से में पी जाती है।
- हल्की दोमट मृदा: गुरुग्राम के उत्तरी भाग तथा अम्बाला के दक्षिणी पश्चिमी भाग तथा मध्य रेवाड़ी में पाई जाती है।
- दोमट मृदा: राज्य के मध्यवर्ती भाग में पाई जाती है जींद कैथल, सोनीपत, गुरुग्राम, कुरुक्षेत्र आदि क्षेत्रों में पाई जाती है।
मुख्य फसलें:
- गेहूं, चावल, मक्का, ज्वार, मूंग, तिलहन, दलहन (जैसे चना), आलू।
सामान्य भरी मृदा
4. सामान्य भारी मृदा (Normal Heavy Soil)
विशेषताएं:
- प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी आने के कारण नवीन जलोढ़ का जमाव हो जाता है।
- बहुत छोटे कण (कीचड़ के कण) होने के कारण मजबूत और स्थिर संरचना होती है।
- जल ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है।
- सूखने के बाद कठोर हो जाती है।
- इसमें जैविक पदार्थ (ह्यूमस) की पर्याप्त मात्रा होती है।
स्थान:
- यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत और फरीदाबाद में पाई जाती है।
मुख्य फसलें:
- चावल, गेंहू और गन्ना।
5. बहुत भारी मृदा (Very Heavy Soil)
विशेषताएं:
- इसमें कीचड़ के कणों की मात्रा बहुत अधिक होती है, और यह मिट्टी सख्त तथा अधिक चिपचिपी होती है।
- यह बहुत ही घनी और कठोर मिट्टी होती है।
- यह मिट्टी अत्यधिक जल ग्करहण करने की क्षमता रखती है, जिससे यह बहुत गीली हो जाती है।
- जल निकासी की समस्या ज्यादा गंभीर होती है।
- इसमें जैविक पदार्थ (ह्यूमस) की पर्याप्त मात्रा होती है।
- इस मिट्टी में वायु का संचार अत्यधिक धीमा होता है।
स्थान:
- थानेसर जगधारी और फतेहाबाद में पाई जाती है।
मुख्य फसलें:
- चावल,कपास, गेंहू और जौ।
6. शिवालिक मृदा (Shivalik Soil)
विशेषताएं:
- यह मिट्टी मुख्य रूप से पठरीली और गाद (सिल्ट) मिश्रित मृदा होती है।
- इसमें गाद (सिल्ट), बालू और कीचड़ का मिश्रण होता है।
- यह मिट्टी सामान्यत: जल धारण करने में सक्षम होती है।
- शिवालिक मृदा उबाऊ और सूखी होती है, और इसमें पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
स्थान:
- पंचकुला, यमुनानगर, कालका, जगधारी, अम्मेंबाला आदि क्षेत्रों में पाई जाती है।
मुख्य फसलें:
- गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, दलहन (जैसे चना, मटर)।
7. गिरिपादीय मृदा (Giripadi Soil)
विशेषताएं:
- इसमें कंकड़, पत्थर और अन्य खनिज कण होते हैं।
- जल ग्रहण करने की क्षमता सामान्यत: कम होती है।
- पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
- इसे कंघी मृदा के नाम से भी जाना जाता है।
- यह मृदा थोड़ी कठोर और पथरीली होती है।
स्थान:
- कालका एवं नारायणगढ की तहसीलों में पाई जाती है।
मुख्य फसलें:
- गेहूं, जों।
8. चट्टानी मृदा (Rocky Soil)
विशेषताएं:
- इस मृदा में बड़ी चट्टानों और पत्थरों की अधिकता होती है।
- यह मृदा कठोर और पथरीली होती है।
- जल धारण क्षमता बहुत कम होती है।
- चट्टानी मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती है।
- यह मृदा कम उपजाऊ होती है।
स्थान:
- काहरियाणा के दक्षिणी भाग में अरावली पर्वत के क्षेत्र में पाई जाती है।
मुख्य फसलें:
- गेहूं, जों।
नोट:
- नवीन जलोढ़ जमाव को खादर कहते हैं और पुराणी जलोढ़ को बांगर कहते हैं
- थानेसर और फतेहाबाद में घग्गर के क्षेत्र में सोलर नामक कठोर चिका मृदा पाई जाती है
मिट्टी के प्रकारों का सुधार और प्रबंधन
हरियाणा की मिट्टी की विविधता कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी विशेषताओं के अनुसार सुधार और प्रबंधन की आवश्यकता होती है। मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने और सुधारने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं:
- उर्वरक का प्रयोग: मिट्टी की पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। रासायनिक और जैविक उर्वरक दोनों का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक होता है।
- सिंचाई तकनीक: जलधारण क्षमता को बढ़ाने के लिए उचित सिंचाई तकनीकों का पालन किया जाता है। ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर प्रणाली जैसी आधुनिक तकनीकें जल का सही उपयोग सुनिश्चित करती हैं।
- मिट्टी की जाँच: नियमित रूप से मिट्टी की जाँच कराकर उसकी पोषक तत्वों की स्थिति और pH स्तर को मापा जाता है, ताकि आवश्यक सुधारात्मक उपाय किए जा सकें।
- मृदा संरक्षण: मिट्टी के कटाव को रोकने और उसकी उर्वरता को बनाए रखने के लिए मृदा संरक्षण के उपायों को अपनाया जाता है। इसमें बंकर बधाई, वानिकी, और मिश्रित फसलों की खेती शामिल है।
- जैविक सुधार: जैविक पदार्थों जैसे कि गोबर की खाद और कम्पोस्ट का उपयोग मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
मृदा अपरदन (Soil Erosion)
मृदा अपरदन (Soil Erosion) वह प्रक्रिया है, जिसमें मृदा के ऊपरी उपजाऊ परत का कटाव हो जाता है। यह प्राकृतिक (मुख्यत: जल या वायु) या मानवजनित गतिविधियों के के द्वारा होता है। मृदा अपरदन के कारण कृषि भूमि की उत्पादकता में कमी आ जाती है और भूमि की उपजाऊ क्षमता समाप्त हो सकती है। मृदा अपरदन से भूमि की उपजाऊ परत नष्ट हो जाती है। मृदा अपरदन ओ रेंगती मृतु भी कहा जाता है।
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