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Tuesday, February 11, 2025
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रातापानी को भारत का 57वां बाघ अभयारण्य घोषित किया गया

भारत ने अपने बाघ संरक्षण प्रयासों को और बढ़ावा देते हुए मध्य प्रदेश के रतापानी वन्यजीव अभयारण्य को अपना 57वां बाघ अभयारण्य घोषित किया है। यह कदम भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो विश्व की जंगली बाघों की आबादी का 70% से अधिक संरक्षण करता है।

बाघ अभयारण्य की परिभाषा

बाघ अभयारण्य प्रोजेक्ट टाइगर (1973) के तहत विशेष रूप से नामित क्षेत्र हैं, जिनका उद्देश्य बाघ और उनके आवास का संरक्षण करना है। प्रत्येक अभयारण्य में शामिल होते हैं:
  • कोर क्षेत्र (Core Areas): कानूनी रूप से राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य के रूप में नामित, जहां मानव गतिविधियाँ न्यूनतम होती हैं।
  • बफर क्षेत्र (Buffer Zones): वनों और गैर-वन भूमि का मिश्रण, जो वन्यजीवों और मानव गतिविधियों के बीच संक्रमण क्षेत्र के रूप में काम करता है।
वर्तमान में भारत के 57 बाघ अभयारण्य 82,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हैं, जो देश के भूगोल का लगभग 2.3% है। ये क्षेत्र जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं।

कैसे घोषित होते हैं बाघ अभयारण्य?

  • राज्य-स्तरीय पहचान: बाघों की जनसंख्या और उपयुक्त आवास वाले क्षेत्रों का पारिस्थितिक मूल्यांकन के आधार पर चयन।
  • प्रस्ताव जमा: राज्य सरकार विस्तृत प्रस्ताव बनाकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को भेजती है, जो समीक्षा कर पर्यावरण मंत्रालय को भेजता है।
  • कानूनी अधिसूचना: जन आपत्तियों के समाधान के बाद, राज्य सरकार वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 38V के तहत अंतिम अधिसूचना जारी करती है।
  • प्रबंधन योजनाएँ: आवास सुधार, शिकार-रोधी उपाय और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित योजनाएँ बनाई जाती हैं। इन्हें प्रोजेक्ट टाइगर के तहत केंद्रीय सहायता दी जाती है।

बाघ अभयारण्य का महत्व

  • पारिस्थितिकीय लाभ: शीर्ष शिकारी होने के कारण, बाघ पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखते हैं और जैव विविधता बनाए रखते हैं।
  • अम्ब्रेला प्रभाव: बाघों का संरक्षण सह-अस्तित्व वाली प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र को भी लाभ पहुंचाता है।
  • जलवायु लाभ: नेचर में प्रकाशित 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, 2007-2020 के बीच बाघ अभयारण्यों ने 5,800 हेक्टेयर वन की कटाई को रोका, जिससे 10 लाख मीट्रिक टन CO₂ उत्सर्जन कम हुआ।

 ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान प्रासंगिकता

स्वतंत्रता के बाद शिकार और आवास हानि के कारण भारत में बाघों की संख्या में भारी गिरावट आई। 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत, 9 अभयारण्यों से शुरुआत की गई, जिनमें कॉर्बेट (उत्तराखंड) और कान्हा (मध्य प्रदेश) शामिल थे।
आज भारत 2022 के NTCA के अनुमान के अनुसार 3,167 जंगली बाघों का घर है। रतापानी को बाघ अभयारण्य में जोड़ने का निर्णय संरक्षण के प्रति भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में सहायक है।
Note – The above given information has been published only after checking it once or twice. if there is still any error in the given information, then comment us below box so that we can correct the information.
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