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Tuesday, February 11, 2025
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हरियाणा का मध्यकालीन इतिहास | Medieval History of Haryana

हरियाणा का मध्यकालीन इतिहास एक महत्वपूर्ण समयकाल है जिसमें कई प्रमुख घटनाएँ, आक्रमण, संघर्ष और राजनीतिक परिवर्तनों ने इस क्षेत्र को प्रभावित किया। हरियाणा की धरती न केवल विभिन्न राजवंशों और शासकों के आक्रमण का गवाह रही, बल्कि यह अनेक साम्राज्यों के बीच संघर्ष और विद्रोह का केंद्र भी बनी। इस लेख में हरियाणा के मध्यकालीन इतिहास का वर्णन किया गया है जिसमें आरंभिक मुस्लिम आक्रमण, तराईन की लड़ाइयाँ, सल्तनत काल में हरियाणा और मुगल साम्राज्य के दौरान प्रमुख विद्रोह शामिल हैं।

आरंभिक मुस्लिम आक्रमण

11वीं सदी में महमूद गज़नी ने भारत पर कई बार आक्रमण किया और हरियाणा का क्षेत्र भी इस हमले से अछूता नहीं रहा। महमूद गज़नी ने सोमनाथ सहित अन्य मंदिरों पर आक्रमण करके बहुत सारा धन लूटा। उसने भारत पर लगभग 17 बार आक्रमण किए और इन हमलों का मुख्य उद्देश्य भारत की धन-समृद्धि को गजनी ले जाना था। महमूद के बाद गजनी पर कमजोर शासकों का शासन हुआ, जिससे गौर प्रांत के शासक स्वतंत्र हो गए और मुस्लिम शासन का केंद्र लाहौर में स्थानांतरित हो गया।

12वीं सदी के अंत में, 1173 ई. में, मोहम्मद गौरी ने गजनी पर अधिकार कर लिया। उसने खुसरो मलिक को हराकर लाहौर पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद, मोहम्मद गौरी की नजर उत्तरी भारत पर थी और उसने यहां अपना साम्राज्य स्थापित करने का मन बना लिया। इस समय भारत में राजनीतिक अस्थिरता और राजपूत राजाओं के बीच आपसी फूट का लाभ उठाते हुए उसने अपने आक्रमण तेज कर दिए।

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तराईन की लड़ाइयाँ

तराईन की लड़ाइयाँ भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रखती हैं। यह लड़ाइयाँ राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान और गौर के शासक मोहम्मद गौरी के बीच हुईं।

प्रथम तराईन की लड़ाई (1191 ई.):
प्रथम तराईन की लड़ाई 1191 ई. में हुई। इस लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को पराजित किया। गौरी की सेना बुरी तरह हारी और स्वयं मोहम्मद गौरी घायल हो गया। इस लड़ाई में पृथ्वीराज ने अपनी कुशल युद्धनीति और सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया और सरहिंद पर फिर से अधिकार कर लिया।

द्वितीय तराईन की लड़ाई (1192 ई.):
प्रथम लड़ाई में हारने के बाद मोहम्मद गौरी ने दोबारा युद्ध की तैयारी की और अगले ही साल 1192 में फिर से तराईन के मैदान में पृथ्वीराज से युद्ध किया। इस बार मोहम्मद गौरी ने छल का सहारा लिया। उसने अपनी सेना को पांच भागों में बाँट दिया और राजपूत सेना को चारों तरफ से घेर लिया। इस रणनीति से गौरी ने राजपूत सेना को हराने में सफलता पाई। पृथ्वीराज चौहान इस लड़ाई में हार गए और इस हार के बाद दिल्ली व उत्तर भारत में मुस्लिम शासन की नींव रखी गई। इस लड़ाई के बाद दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और यह क्षेत्र मुस्लिम शासन के अधीन आ गया।

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सल्तनत काल में हरियाणा

सल्तनत काल में हरियाणा दिल्ली सल्तनत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। दिल्ली सल्तनत के शासकों ने इस क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाने के रूप में विकसित किया। इस काल में हरियाणा में कई किले और चौकियाँ स्थापित की गईं ताकि यहां के राजपूत शासकों पर नियंत्रण रखा जा सके और सल्तनत के खिलाफ किसी भी विद्रोह को कुचला जा सके। दिल्ली के सुल्तानों ने न केवल राजनीतिक बल्कि धार्मिक विस्तार के लिए भी प्रयास किया।

सल्तनत के शासकों ने हरियाणा में कई सुधार किए जैसे कि सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण। फिरोज शाह तुगलक ने हरियाणा में हिसार शहर की स्थापना की और नहरों का निर्माण करवाया। फिरोज शाह तुगलक का शासनकाल हरियाणा के लिए विकास और सुधारों का समय था।

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सल्तनत काल में मेवातियों के विद्रोह

सल्तनत काल में हरियाणा के मेवात क्षेत्र के मेवाती लोगों ने कई बार विद्रोह किया। मेवातियों का विद्रोह सल्तनत के शासकों के लिए एक बड़ी चुनौती था। मेवात क्षेत्र, जो आज का मेवात जिला है, में मेवाती लोग स्वतंत्रता-प्रेमी थे और बाहरी शासकों के अधीन रहना पसंद नहीं करते थे। उनके इस विद्रोह का कारण दिल्ली सल्तनत की कठोर नीतियाँ थीं।

सल्तनत के शासकों ने मेवातियों के विद्रोह को कुचलने के लिए कई प्रयास किए और क्षेत्र में किलों और गढ़ों का निर्माण करवाया। फिरोज शाह तुगलक ने मेवात क्षेत्र में एक बड़ी सैन्य अभियान चलाया ताकि मेवातियों के विद्रोह को दबाया जा सके। सल्तनत काल में मेवातियों का यह विद्रोह दिल्ली सल्तनत के स्थायित्व के लिए एक चुनौती बना रहा।

सल्तनत काल में मेवातियों के विद्रोह को संक्षेप में पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

मुगल काल में हरियाणा

मुगल काल में हरियाणा का राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व और बढ़ गया। मुगलों ने हरियाणा में कई बड़े और प्रभावशाली निर्माण कार्य किए।

  • मुगल वंश की स्थापना मुगल शासक बाबर जो मध्य एशिया के फरगना का निवासी था के द्वारा 1526 ई. में हरियाणा के पानीपत में इब्राहिम लोदी को हराकर की गई थी। पानीपत का क्षेत्र मुगलों के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था और इसने मुगलों के भारत पर शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पानीपत की पहली लड़ाई (1526):

  • 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के मैदान में पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ, जिसमें बाबर द्वारा इब्राहिम लोदी की पराजय के बाद मुगलों ने केवल हरियाणा पर ही नहीं, बल्कि पूरे भारत पर अधिकार कर लिया।
  • पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुगलुमा युद्ध नीति एवं तोपखाने का प्रयोग किया था।
  • पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत का अन्तिम सुल्तान इब्राहिम लोदी सम्भवतः मध्यकाल का पहला ऐसा शासक था, जिसे युद्ध स्थल में मार दिया गया था।

पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556):

  • हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर के बीच 5 नवम्बर, 1556 को पानीपत का दूसरा युद्ध हुआ था। इस युद्ध में हेमू की पराजय हुई थी।
  • इस प्रकार दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अन्तिम हिन्दू शासक हेमू था।

पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761):

  • 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुई।
  • इस लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई और मराठों को हार का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई के बाद मुगलों का प्रभाव कमजोर हो गया और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ।

मुगल काल व पानीपत की लड़ियों को संक्षेप में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

मुगल काल में प्रमुख विद्रोह

मुगल साम्राज्य के दौरान हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रमुख विद्रोह हुए। खासकर जाट, गुर्जर और मेवाती समुदायों ने मुगल शासकों के खिलाफ विद्रोह किए।

जाट विद्रोह:

मुगल शासनकाल में हरियाणा के जाट समुदाय ने मुगलों के खिलाफ कई विद्रोह किए। ये विद्रोह और संघर्ष मुगलों के अधीन शोषण, भारी कर और धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ थे। जाटों का विद्रोह औरंगजेब के शासनकाल के दौरान बहुत प्रमुख हो गया और इसने मुगल साम्राज्य को कमजोर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुर्जर और अन्य समुदायों का विद्रोह:

हरियाणा के गुर्जर समुदाय ने भी समय-समय पर मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया। इसके अलावा, अन्य किसान समुदायों ने भी मुगल प्रशासन की कड़ी नीतियों के खिलाफ विद्रोह किए। इन विद्रोहों का उद्देश्य अत्याचार और दमन के खिलाफ आवाज उठाना था।

सतनामियों का विद्रोह: 

1672 ई. में फौजदार ताहिर खाँ तथा उसकी सेना को सतनामियों ने हरा दिया। इसके पश्चात् अहिरवाल क्षेत्र के नारनौल पर सतनामियों द्वारा अधिकार कर लिया गया। इनके द्वारा सारे नारनौल नगर से मुगल शासन के चिह्न मिटा दिए गए।

बन्दा बैरागी (बन्दा बहादुर) का संघर्ष:

3 मार्च, 1707 को औरंगजेब के निधन के बाद हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो गई।  इसी का लाभ उठाते हुए बन्दा बैरागी ने 1709-10 ई. में मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। फर्रुखसियर के आक्रमण के बाद बन्दा बैरागी लोहगढ़ के किले में आ गया।  1715 ई. में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने बन्दा बैरागी की हत्या करा दी।

रेवाड़ी के अहीर शासक:

रेवाड़ी में अहीर रियासत की स्थापना नन्दराम अहीर (गढ़ी बेलना रेवाड़ी) द्वारा औरंगजेब के काल में हुई थी।  नन्दराम अहीर के बाद बालकिशन वहाँ का शासक बना। बालकिशन अपनी वीरता के लिए विख्यात था, उसकी वीरता से प्रभावित होकर तत्कालीन मुगल शासक मुहम्मदशाह ने उसे शमशेर बहादुर की उपाधि प्रदान की।

मुग़ल काल के प्रमुख विद्रोह पढने के लिए यहाँ क्लिक करे 

 

 

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