हरियाणा की संस्कृति विविधता और जीवंतता से भरी हुई है, जहाँ विभिन्न संस्कृतियों के लोग अपनी कला और परंपराओं को अनोखे अंदाज में प्रस्तुत करते हैं। यह राज्य अपने त्योहारों और उत्सवों के दौरान खासतौर पर हरियाणवी लोक नृत्य और लोकगीतों के जरिए अपने सांस्कृतिक जीवन का प्रदर्शन करता है। यहाँ के लोक नृत्य न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और परंपरा के प्रतीक भी हैं। हरियाणा के ये नृत्य समृद्ध विरासत को संजोने और इस क्षेत्र को पूरे भारत में अलग पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब, शिक्षित हो या अनपढ़, हरियाणवी लोक कलाएं सभी के दिलों में बसती हैं और हरियाणा के लोकजीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।
हरियाणा के प्रमुख लोक नृत्य
छठी नृत्य:
यह नृत्य बच्चे के जन्म के छठे दिन परिवार की महिलाओं द्वारा रात में किया जाता है। छठी नृत्य भी एक अनुष्ठानिक नृत्य है, जिसे उसी अवसर पर किया जाता है। लेकिन, यह नृत्य केवल लड़के के जन्म पर किया जाता है। परंपरागत रूप से, इस नृत्य के अंत में सभी उपस्थित लोगों को गेहूं और चने से बनी विशेष मिठाई जिसे बाकलि कहा जाता है, बांटी जाती है। इस नृत्य का आयोजन पारिवारिक समृद्धि और नवजात शिशु के उज्जवल भविष्य की कामना के लिए किया जाता है।
खोरिया (खोडिया) नृत्य
खोरिया नृत्य विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रस्तुत झूमर नृत्य शैली और चरणों की विविधता का एक सामूहिक रूप है। यह नृत्य हरियाणा के मध्य क्षेत्र में लोकप्रिय है और लोगों के दैनिक मामलों से जुड़ा हुआ है और सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे फसल, कृषि कार्य इत्यादि के लिए, इस नृत्य के लिए, कलाकार बढ़िया गोल्डन-थ्रेड वर्क के साथ स्कर्ट पहनते हैं और भारी देहाती गहनों के साथ चमकीले रंग के घूंघट वाले दुपट्टे पहनते हैं।
खेड़ा नृत्य:
खेड़ा नृत्य हरियाणा का एक अनोखा नृत्य है जो विशेष रूप से दुःख के अवसर पर किया जाता है। जब परिवार में किसी बुजुर्ग का निधन होता है, तो महिलाओं द्वारा यह नृत्य शोक के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
घूमर नृत्य:
राजस्थान का यह नृत्य हरियाणा के कुछ जिलों में भी लोकप्रिय है, खासकर उन इलाकों में जो राजस्थान की सीमा से लगे हुए हैं। घूमर नृत्य में महिलाएं गोल-गोल चक्कर लगाते हुए गीत गाती और नाचती हैं। यह नृत्य विशेष रूप से होली, तीज और विवाह जैसे अवसरों पर किया जाता है। नववधू के घर में प्रवेश के समय भी महिलाएं इस नृत्य का आयोजन करती हैं।
झूमर नृत्य:
हरियाणा का झूमर नृत्य विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह नृत्य विशेष आभूषणों जैसे झूमर को माथे पर धारण करके पारंपरिक हरियाणवी पोशाक में प्रस्तुत किया जाता है। ढोलक की ताल पर यह महिलाएं जोड़े बनाकर नाचती हैं। यह नृत्य हरियाणवी गिद्दा के रूप में भी जाना जाता है और पंजाब के गिद्दा नृत्य से मिलता-जुलता है।
घोड़ी नृत्य:
यह नृत्य विवाह के अवसर पर घुड़चढ़ी के समय पुरुषों द्वारा किया जाता है। पुरुष इस नृत्य में गत्ते या कागज का मुखौटा लगाकर घोड़े का रूप धारण करते हैं और नाचते हैं। यह नृत्य विवाह के उत्साह और खुशी का प्रतीक है।
धमाल नृत्य:
पुरुषों का यह नृत्य किसानों द्वारा तब किया जाता है जब उनकी फसल पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह नृत्य हरियाणा के गुरुग्राम, रेवाड़ी, और महेंद्रगढ़ जिलों में बहुत प्रसिद्ध है और इसका संबंध महाभारत काल से माना जाता है। फाल्गुन मास की चाँदनी रात में किसान इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं।
फाग नृत्य:
फाग नृत्य फाल्गुन के महीने में होली से कुछ दिन पहले किया जाता है। इसमें महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र और पुरुष रंगीन पगड़ी पहनकर नृत्य करते हैं। यह नृत्य किसानों की मेहनत और उनके द्वारा फसल कटाई के बाद की खुशी का प्रतीक है।
रासलीला नृत्य:
यह नृत्य भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों के प्रेम-भावना पर आधारित है। इस नृत्य का प्रदर्शन जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष रूप से किया जाता है और यह हरियाणा के फरीदाबाद, होडल, पलवल और आसपास के क्षेत्रों में लोकप्रिय है। इसे तांडव (पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य) और लास्य (महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य) में बांटा गया है।
लूर नृत्य:
हरियाणा के बांगर क्षेत्र में यह नृत्य विशेष रूप से लड़कियों द्वारा बसंत ऋतु में किया जाता है। इस नृत्य में लड़कियाँ रंगीन वस्त्र पहनकर समूह में नृत्य करती हैं। पुरुषों को इस नृत्य में भाग लेने की अनुमति नहीं होती।
डफ नृत्य:
डफ नृत्य को ढोल नृत्य के नाम से भी जाना जाता है। यह वीर और श्रृंगार रस का प्रतिनिधित्व करता है और बसंत ऋतु में किया जाता है। पहली बार इसे 1969 में गणतंत्र दिवस समारोह में प्रस्तुत किया गया था।
गोगा नृत्य:
गोगा नृत्य को गुगा नृत्य के नाम से भी जाना जाता है। यह नृत्य गोगा पीर के भक्तों द्वारा नवमी के अवसर पर किया जाता है, जिसमें भक्त गोगा पीर की पूजा में खुद को जंजीरों से पीटते हैं। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में गोगा मेड़ी पर इस अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है।
रतवाई नृत्य:
हरियाणा के मेवात जिले में यह नृत्य सबसे अधिक लोकप्रिय है। यह ढोल और मंजीरों के साथ प्रस्तुत किया जाता है और इसे महिलाएं और पुरुष दोनों मिलकर करते हैं।
सांग नृत्य:
सांग नृत्य हरियाणा का एक लोकप्रिय पारंपरिक पारंपरिक लोक नृत्य है, जो सही मायनों में अपनी संस्कृति को दर्शाता है। नृत्य मुख्य रूप से उन धार्मिक कहानियों और लोक कथाओं को दर्शाता है जो खुले सार्वजनिक स्थानों पर की जाती हैं और यह 5 घंटे तक चलती हैं। हरियाणा के इस पारंपरिक लोक नृत्य में क्रॉस-ड्रेसिंग काफी लोकप्रिय है, कुछ पुरुष प्रतिभागी नृत्य में महिला का हिस्सा बनाने के लिए महिलाओं के रूप में तैयार होते हैं। `सांग` या` स्वांग` का अर्थ प्रच्छन्न या `प्रतिरूपित करना` है। यह माना जाता है कि यह नृत्य रूप पहली बार उत्पन्न हुआ और फिर 1750 ई। में किशन लाल भट द्वारा इसके वर्तमान रूप में विकसित हुआ।
अन्य महत्वपूर्ण लोक नृत्य
- डमरू नृत्य: यह नृत्य महाशिवरात्रि के अवसर पर डमरू बजाकर किया जाता है।
- गणगौर नृत्य: यह नृत्य देवी पार्वती की पूजा के लिए हिसार और फतेहाबाद क्षेत्रों में किया जाता है।
- बीन-बाँसुरी नृत्य: हरियाणा के कई हिस्सों में यह नृत्य किया जाता है, जिसमें घड़े पर रबड़ बाँधकर संगीत की धुन निकाली जाती है।
- तीज नृत्य: तीज के पर्व पर सावन महीने में महिलाएं झूला झूलती हैं और समूह में नाचती हैं।
- चौपाइया: चौपाइया एक भक्ति नृत्य है और पुरुषों और महिलाओं द्वारा` मंजीरा` को लेकर किया जाता है।
- डीपैक: डीपैक नृत्य में, मिट्टी के दीपक ले जाने वाले पुरुष और महिलाएं, नृत्य के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं, जो अक्सर पूरी रात चलती है।
- रतवई: बारिश के दौरान, `रतवई` नृत्य मेवातियों का पसंदीदा है।
- बीन-बाँसुरी: `बीन-बाँसुरी` नृत्य` हवा` की संगत के साथ चलता है, जो एक हवा का वाद्य यंत्र है और `बांसुरी` को बांसुरी के नाम से भी जाना जाता है।
हरियाणा के ये लोक नृत्य अपनी विविधता और शैली में अनूठे हैं। ये नृत्य न केवल मनोरंजन के माध्यम हैं बल्कि हरियाणा की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रखने और नई पीढ़ियों को परंपराओं से जोड़ने का कार्य भी करते हैं।