पुरुषोत्तम उपाध्याय, प्रसिद्ध गुजराती गायक और संगीतकार, का 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके मधुर स्वरों और कालजयी रचनाओं ने गुजराती संगीत को अद्वितीय ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से गुजराती समुदाय और प्रवासी भारतीयों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी। उपाध्याय का निधन संगीत जगत के एक युग का अंत है, और उनके योगदान को लाखों लोग संजोकर रखेंगे।
![मशहूर गुजराती गायक पुरूषोत्तम उपाध्याय का निधन](https://haryanamagazine.com/wp-content/uploads/2024/12/मशहूर-गुजराती-गायक-पुरूषोत्तम-उपाध्याय-का-निधन-1024x576.jpg)
मुख्य बिंदु
पूरा नाम: पुरुषोत्तम उपाध्याय
जन्म तिथि: 15 अगस्त 1934, खेड़ा, गुजरात
निधन: 90 वर्ष की आयु में, मुंबई स्थित निवास पर
प्रारंभिक जीवन और करियर
बचपन से ही संगीत के प्रति जुनून।
संगीत के लिए मुंबई गए, पर शुरुआती संघर्षों का सामना किया।
गुजरात लौटकर रंगमंच कंपनियों में प्रदर्शन शुरू किया।
नूरजहां के गाए गीत के प्रदर्शन के बाद प्रमुख कलाकारों के साथ सहयोग का अवसर मिला।
मुख्य उपलब्धियां
20 से अधिक फिल्मों और 30 नाटकों के लिए संगीत की रचना।
प्रसिद्ध गुजराती गीत जैसे “हे रंगलो जम्यो”, “दिवसो जुदाइना जाय छे”, “ऐ जाशे जरूर मिलन सुधी”, और “कहूं छु जवानिनें” के लिए प्रसिद्ध।
गुजरात गौरव पुरस्कार और पद्म श्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित।
गुजराती संगीत में योगदान
उनकी रचनाएँ गुजरात से बाहर, प्रवासी गुजराती समुदाय में भी लोकप्रिय रहीं।
गुजराती भाषा को जीवित रखने में उनके सरल लेकिन प्रभावशाली संगीत का महत्वपूर्ण योगदान।
सार्वजनिक व्यक्तियों की संवेदनाएँ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त किया और उपाध्याय को “महान गायक” बताते हुए उनके गुजराती संगीत के संरक्षण में योगदान की प्रशंसा की।
विरासत
उपाध्याय का संगीत आज भी प्रेरणा देता है और उनकी रचनाएँ श्रोताओं के दिलों में जीवित रहेंगी।
उनका निधन कला जगत के लिए एक बड़ी क्षति है।